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Sewa

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[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row css=”.vc_custom_1544509919205{margin-top: 0px !important;margin-bottom: 50px !important;padding-top: 10px !important;}”][vc_column][vc_column_text css_animation=”none”]Sewa or voluntary service for a noble cause is rated very high on the spiritual scale. If anything is done voluntarily, silently, humbly and motivelessly for the good of others, it is known as ‘Sewa’ or service. Sewa is offered without any hope of prize, praise or reward or recognition. It is done with a strong commitment and total dedication in a spirit of self-satisfaction and spiritual solace. Swami Ji Maharaj opines, “Only that life is good which carries or bears the fruit of Sewa.“[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row css=”.vc_custom_1545037667658{margin-top: 0px !important;margin-bottom: 0px !important;padding-top: 10px !important;}”][vc_column][vc_column_text]

Swamiji Maharaj on Jan Sewa: (Service of the Humanity)

[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row css=”.vc_custom_1545037813513{margin-top: 0px !important;padding-top: 10px !important;}”][vc_column width=”1/4″][vc_single_image image=”5634″ img_size=”400″ alignment=”center” css_animation=”none”][/vc_column][vc_column width=”3/4″][vc_column_text css_animation=”none”]उपासक को तो जन सेवा के उत्तम कर्म, परहित, परोपकार आदि, ये सब, राम पूजा ही समझनी चाहिये। यह नहीं समझना चाहिये कि यह समय व्यर्थ जाता है। ये तो जप, पाठ, ध्यान, स्वाध्याय की भांति उत्तम कर्म है। इसलिए यह बात बहुत सच्ची कही गई है-

‘‘स्वकर्मणा तमभ्यच्र्यसिद्धिंविन्दति मानवः।

मनुष्य अपने सुकृत कर्मों से उस परमेश्वर को पूज कर सिद्धि को प्राप्त करता है।
उपासक के लिए तो सेवा, राम पूजन की सामग्री ही है। जो लोग अपने मन-मन्दिर में, श्री राम नाम की मूर्ति की आराधना करते है, उनके लिए तो जन सेवा के सब शुभ कार्य उस मनोहर मूर्ति की पूजा के पुष्प, पत्र, धूप, दीप और नैवेद्य ही हुआ करते हैं।

साधक को भली भांति समझना चाहिए कि दूसरे सज्जनों में राम नाम का प्रचार करना, स्वाध्याय के लिए उन को प्रेरित करना, सत्संग के लिए उत्साह देना, अपने जीवन को उत्तम बनाने के लिए उनमें भावना उत्पन्न करना, ये सब कर्म भी सेवा के कर्म हैं। इसी प्रकार जो लोग पिछड़े हुए है। उनको उठाना, आगे बढ़ाना, दुःखी दीन का सहायक होना, विद्या प्रचार और सुधार के कामों में भाग लेना एवं जिससे समाज में शुभ की वृद्धि हो वह काम करना और करवाना, ये सब सुकृत कर्म,सेवा धर्म के अंग है।

उपासक अपने मन में यह निश्चय रखे कि ऊपर के सभी कर्म उसके ध्यान सिमरन के सहायक हैे और श्री राम के आशीर्वाद अवतरण के श्रेष्ठतर द्वार है।”[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row css=”.vc_custom_1533704847177{margin-top: 20px !important;padding-top: 30px !important;}”][vc_column width=”2/3″][vc_column_text css_animation=”none”]

Pujya Pitaji Maharaj emphasized on self-less service throughout his life.

He said that service to Nar (Humanity) is true worship of Narayan ( i.e.God).

If we can offer food and milk to the idols made of stone and wood,
then why we are so indifferent to living images of God.

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