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जीवन का महत्त्व और जीवन की पूर्णता मन की कामनाओं को पूरा करने में नहीं है, यह स्वर्ग को प्राप्त करना भी नहीं है और ना ही भौतिक सुखों को प्राप्त करना है | साधन करने का अर्थ ऐहलौकिक और पारलौकिक सुखों की प्राप्ति एवं तृप्ति में नहीं बल्कि निवृति में है |
जब हम स्वादुत्तम पदार्थ खाते हुए भी उसके स्वाद से ऊपर उठ जाते हैं, जब हम बहुमूल्य वस्तुओं से रहते हुए भी उन वस्तुओं को नकारते हैं और केवल अपने शुभ कर्मों को बढ़ाने की ओर अपनी दृष्टि रखते हैं, वहीं पर जीवन की पूर्णता है |
जीवन का महत्त्व और जीवन की पूर्णता मन की कामनाओं को पूरा करने में नहीं है, यह स्वर्ग को प्राप्त करना भी नहीं है और ना ही भौतिक सुखों को प्राप्त करना है | साधन करने का अर्थ ऐहलौकिक और पारलौकिक सुखों की प्राप्ति एवं तृप्ति में नहीं बल्कि निवृति में है |
जब हम स्वादुत्तम पदार्थ खाते हुए भी उसके स्वाद से ऊपर उठ जाते हैं, जब हम बहुमूल्य वस्तुओं से रहते हुए भी उन वस्तुओं को नकारते हैं और केवल अपने शुभ कर्मों को बढ़ाने की ओर अपनी दृष्टि रखते हैं, वहीं पर जीवन की पूर्णता है |