॥दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज,
ननजमनु मुकु रु सुधारर ।
बरनउँ रघुबर नबमल जसु,
जो दायकु फल चारर ।
बुद्धिहीन तनु जाननके
सुनमर ौं पवन-कु मार ।
बल बुनध नबद्या देहु मोनहौं
हरहु कलेस नबकार ।
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